उर्वशी और पुरुरवा एक प्रेम कथा - भूमिका Ashish Kumar Trivedi द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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उर्वशी और पुरुरवा एक प्रेम कथा - भूमिका


उर्वशी और पुरुरवा
एक प्रेम कथा

भूमिका


प्रेम मानवीय भावनाओं में सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। प्रेम एक भावना है। अतः किसी वस्तु की भांति इसे परिभाषित कर पाना कठिन है। इसे तो केवल ह्रदय से अनुभव किया जा सकता है। क्योंकी प्रत्येक व्यक्ति का स्वभाव अलग होता है। अतः प्रेम की अनुभूति भी सबके लिए अलग अलग होती है। कोई जड़ वस्तुओं से प्रेम करता है तो कोई चेतन प्राणियों से। तो कोई जड़ और चेतन दोनों में ही ईश्वर के दर्शन कर सभी से प्रेम करता है।
प्रेम मानवीय रिश्तों का आधार है। इसलिए वह कई रूप धारण कर हमारे सामने आता है। माता पिता का अपनी संतान से प्रेम, भाई बहन का प्रेम, बंधु बांधवों व सखाओं के बीच प्रेम। व्यक्ति का अपने समाज और राष्ट्र से प्रेम निस्वार्थ व सबसे ऊँचा होता है। किंतु जब यह प्रेम ईश्वर के लिए प्रदर्शित होता है तो इसे भक्ति कहा जाता है।
मानवीय संबंध हमें भावनात्मक रूप से सबल बनाते हैं। हमारे जीवन में ऊर्जा व जीने की इच्छा का संचरण करते हैं। इन समस्त रिश्तों का आधार है प्रेम। जैसा मैंने पहले ही कहा था कि प्रेम कई रूपों में हमारे सामने आता है। इनमें स्त्री और पुरुष के बीच का प्रेम सबसे अधिक आकर्षक है।
स्त्री और पुरुष के प्रेम में एक प्रकार की अग्नि होती है। यह अग्नि दो प्रकार से काम करती है। एक तरफ तो मिलन में यह प्रेमियों के ह्रदय को प्रेम की ऊष्मा देती है और दूसरी तरफ विरह में यही अग्नि उन्हें जलाती भी है।
इस प्रेम में एक प्रकार की मधुरता है। इस मधुरता का रसास्वादन ना सिर्फ प्रेमियों को ही मिलता है बल्कि उनके संपर्क में रहने वाले भी इसका अनुभव कर सकते हैं।
सबसे बढ़ कर स्त्री पुरुष के बीच का प्रेम बहुत मादक होता है। यह मादकता उनके अंतस को भिंगोए रखती है। इसके प्रभाव में वह संसार में रहते हुए भी उसे भुलाए रखते हैं। सबके बीच में रहते हुए भी सिर्फ एक दूसरे की कल्पना में डूबे रहते हैं।
स्त्री पुरुष के बीच प्रेम के इसी आकर्षण के कारण प्रेम कहानियां सदियों से सुनी व सुनाई जाती रही हैं। इन प्रेम कहानियों में सुनने व सुनाने वाले दोनों को ही मज़ा आता है। साहित्य हो या फिल्में दोनों ही माध्यमों के द्वारा प्रेम कहानियों को लोगों के सामने प्रस्तुत किया जाता रहा है। काल, देश, सामाजिक व्यवस्था को ध्यान में रखते हुए इनके बाहरी रूप में अंतर हो सकता है किंतु सभी कहानियों के मर्म में प्रेम की तपिश, मधुरता व मादकता को अनुभव किया जा सकता है।
विभिन्न सभ्यताओं में कई प्रेम कहानियां प्रचलित हैं। जब प्रेम कहानियों की बात आती है तो अक्सर लोग लैला मजनू, शीरी फरहाद तथा रोमियो जूलियट की प्रेम कहानी का ज़िक्र करते हैं।
भारतीय समाज में जब प्रेम की बात होती है तब राधा कृष्ण का पावन प्रेम सभी के ह्रदयों को पुलकित कर देता है। किंतु श्रीकृष्ण तो ईश्वर हैं। अतः उनके प्रेम को मानवीय भावनाओं के धरातल पर नहीं लाया जा सकता है। अतः जनमानस के दिलों में स्थान पाने के बावजूद राधा व कृष्ण का प्रेम आम प्रेम कहानियों में स्थान नहीं पा सका।
हमारी पौराणिक कथाओं में कई ऐसी प्रेम कहानियां हैं जो कि मानवीय धरातल पर प्रस्तुत की जा सकती हैं। इन कहानियों को आमजन ने बहुत पसंद किया। सदियों से ये सभी प्रेम कहानियां हमारे नाटकों, नृत्य शैलियों, चित्रकला शैलियों तथा साहित्य में अपना स्थान बनाए हुए हैं। इन प्रेम कहानियों में प्रमुख हैं नल दामयंती, शंकुंतला दुष्यंत एवं उर्वशी और पुरुरवा की प्रेम कहानियां।
मेरे इस लघु उपन्यास की पृष्ठभूमि में उर्वशी और पुरुरवा के बीच पनपे प्रेम की कहानी है। एक ऐसा प्रेम जो कई मायनों में अनूठा था। उर्वशी स्वर्गलोक की अप्सरा थी। जबकी पुरुरवा पृथ्वीलोक का एक शासक। स्वर्गलोक जहाँ सुख, भोग, रास रंग रूप यौवन सब स्थाई है। जबकी पृथ्वीलोक में हर वस्तु नाश्वर है। कुछ भी स्थाई नहीं। ऐसे दो विभिन्न लोकों के निवासियों के बीच प्रेम होना सचमुच में अनोखी बात है।
उर्वशी और पुरुरवा की प्रेम कहानी विश्व की प्राचीनतम कहानियों में से एक है। इस प्रेम कहानी का उल्लेख ऋगवेद के दसवें मंडल के 95 सूक्त की 18 ऋचाओं में भी हुआ है। महाभारत में भी उर्वशी और पुरुरवा के प्रेम का वर्णन हुआ है। महाकवि कालीदस की रचना विक्रमोवंशम में भी इस कहानी का उल्लेख है।
मैंने पहली बार जब इस कहानी को पढ़ा तो मेरे मन में यही आया कि यह तो कई मायनों में एक नायाब कहानी है। इसे हिंदी पाठकों के समक्ष लाया जाना आवश्यक है। यह कहानी पाठकों को उसी प्रकार बांधने में सक्षम है जैसे की अन्य आधुनिक कहानियां।
उर्वशी और पुरुरवा की प्रेम कहानी में वह सब है जो पाठक एक प्रेम कहानी में चाहते हैं। नायक नायिका का एक दूसरे के प्रति आकर्षित होना। उस आकर्षण का प्रेम में परिवर्तित हो जाना। प्रेमी प्रेमिका की एक दूसरे के लिए तड़प। आपसी प्यार व तकरार।
किंतु इस कहानी पर लघु उपन्यास लिखने से पहले मैंने एक लेख के रूप में इसे पाठकों के सामने मातृभारती पर ही रखा था। उसे पाठकों द्वारा पसंद किए जाने पर मैंने इसे आप लोगों के सामने लघु उपन्यास के रूप में लाने का साहस किया।
लघु उपन्यास को लिखने से पहले जब मैंने इस कथा पर कुछ शोध किया तो पाया कि ऋगवेद में वर्णित कहानी के संस्करण व महाकवि कालीदस द्वारा कहे गए संस्करण में अंतर है। ऋगवेद में जो वर्णन है उसके अनुसार अंत में उर्वशी और पुरुरवा सदा के लिए अलग हो जाते हैं। जबकी महाकवी कालीदस ने जो कहानी प्रस्तुत की है उसके अनुसार उर्वशी और पुरुरवा सदा के लिए एक हो जाते हैं। कहानी लिखते समय मैंने दोनों कहानियों का समावेश करने के साथ साथ कुछ अपनी तरफ से जोड़ने का प्रयास भी किया है।
इस कहानी में दो प्रमुख महिला चरित्र हैं। एक तो कहानी की नायिका उर्वशी तथा दूसरी महाराज पुरुरवा की महारानी औशीनरी। उर्वशी स्वर्गलोक की अप्सराओं में श्रेष्ठ है तथा देवराज इंद्र की सबसे प्रिय अप्सरा है। वह नृत्य कला में निपुण है। इंद्रलोक में होने वाले नाटकों में नायिका का अभिनय करती है। ऐसे ही एक नाटक के अभ्यास के दौरान त्रुटि करने पर उसे भरत मुनि के श्राप के कारण साधारण मानुषी बनना पड़ता है।
दूसरी तरफ महारानी औशीनरी रूपवती गुणवती आर्य नारी होने के साथ साथ एक कुशल साम्राज्ञी भी हैं। उर्वशी के प्रेम में व्याकुल पुरुरवा जब अपने राज काज पर भली प्रकार ध्यान नहीं दे पाते हैं तब वही राज्य के संचालन का भार अपने कंधों पर उठाती हैं। मैंने महारानी औशीनरी को एक सशक्त महिला के रूप में प्रस्तुत करने का प्रयास किया है।
महाराज पुरुरवा एक वीर योद्धा व कुशल शासक हैं। देवराज इंद्र के साथ उन्होने कई बार असुरों के दांत खट्टे किए। जब उन्होंने उर्वशी को देखा तो उसके रूप पर मोहित होकर उसके प्रेम में डूब गए। वह उर्वशी के प्रेम में इतने व्याकुल हो गए कि अपने राज्य का मोह भी उन्हें नहीं रहा।
यह प्रेम कहानी आकर्षण व सच्चे प्रेम के बीच का अंतर भी समझाती है। उर्वशी और पुरुरवा के मिलन के पश्चात दोनों ही प्रसन्नता से रह रहे थे। किंतु भरत मुनि के श्राप के कारण एक साधारण मानुषी की तरह रह रही उर्वशी शीघ्र ही उकता गई। उसे भय था कि पृथ्वीलोक में सब कुछ नाश्वर है। अतः उसका चिर यौवन भी उसका साथ छोड़ देगा। वह स्वर्गलोक के सुखों के लिए तरस रही थी। किंतु दूसरी तरफ महाराज पुरुरवा के लिए उर्वशी के प्रेम के अतिरिक्त कोई भी वस्तु अर्थ नहीं रखती थी। यही कारण था कि उर्वशी के वापस स्वर्गलोक चले जाने पर वह अपना सर्वस्व त्याग कर दर दर भटकते रहे।
यह पौराणिक चरित्रों पर आधारित मेरा पहला उपन्यास है जो पाठकों के समक्ष है। मैं यह उम्मीद करता हूँ कि पाठक इस पुस्तक को अपना समर्थन देकर मेरा उत्साह बढ़ाएंगे।
(यह उपन्यास 2019 में वनिका पब्लिकेशंस से पेपरबैक में प्रकाशित हुआ है)

आशीष कुमार त्रिवेदी